Bhakoot dosh kya hota hai : भारतीय ज्योतिष में वर और कन्या के विवाह से पहले दोनों की कुंडली का मिलान किया जाता है। वर और वधू की कुंडली मिलान से पहले कुल आठ मापदंडों पर विचार किया जाता है जिसे अष्टकूट कहा जाता है I इसमें नाड़ी के आठ गुण, भकूट (Bhakoot) के सात गुण, गण मित्रता के छह गुण, ग्रह मित्रता के पांच गुण, योनि मित्रता के चार गुण, ताराबल के तीन गुण, वश्य के दो गुण और वर्ण के एक गुण का मेल होता है। इस प्रकार कुल छत्तीस गुण हैं I
नाड़ी दोष के बाद सबसे महत्वपूर्ण है भकूट का मिलान I यदि वर और कन्या दोनों की कुंडली में भकूट का मेल नहीं हो रहा हो तो यह भकूट दोष कहलाता है। वर और कन्या की कुंडली में भकूट दोष के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नाड़ी दोष के बाद भकूट दोष को छत्तीस में से सात अंक दिए जाते हैं।
भकूट दोष का निर्माण (Formation)
वर और कन्या की कुंडली में यदि एक दूसरे की राशि छठी-आठवीं, नौवीं-पांचवीं या दूसरी-बारहवी हो तो इसे भकूट दोष कहा जाता है I भकूट दोष निम्न प्रकार से बनता है और इसके प्रभाव (effects) निम्नलिखित हैं:-
- छठे और आठवें भाव से भकूट दोष का निर्माण :- मान लीजिए कन्या की राशि वृष है और वर की राशि धनु है तो भकूट दोष होगा I ऐसे विवाह के प्रभाव से वर और कन्या दोनों के स्वास्थ्य को नुकसान होने की संभावना है। ऐसा तब होगा जब दोनों की राशि एक दूसरे की राशि से छठे और आठवें स्थान पर होगी।
- दूसरे और बारहवें भाव से भकूट दोष का निर्माण:– यदि वर और कन्या की राशि एक दूसरे की राशि से दूसरे और बारहवें भाव में हो तो एक अन्य प्रकार का भकूट दोष बनता है। इस प्रकार के विवाह में पति-पत्नी को अपने वैवाहिक जीवन के दौरान गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है। उदाहरण के लिए वर की राशि वृष है और कन्या की राशि मेष है तो इस प्रकार का भकूट दोष बनेगा I
- पांचवें और नौवें भाव से भकूट दोष का निर्माण:- यदि वर और कन्या की राशि एक दूसरे से पंचम और नवम भाव में हो तो एक अन्य प्रकार का भकूट दोष उत्पन्न होता है। उदाहरण के लिए वर की राशि वृष है और कन्या की राशि कन्या (Virgo) है तो इस प्रकार का भकूट दोष बनेगा I इस प्रकार के भकूट दोष में संतान से संबंधित समस्या उत्पन्न होगी। विशेष रूप से संतान के जन्म से संबंधित समस्याएं उत्पन्न होने की संभावना है।
भकूट दोष का परिहार (Cancellation)
भकूट दोष का निवारण या परिहार (cancellation) तभी हो सकता है जब वर और कन्या दोनों की राशियाँ मित्र हों I ऐसी स्थिति में भकूट दोष का प्रभाव निश्चित रूप से कम हो जाएगा। जब दोनों राशियों का स्वामी एक ही ग्रह हो तो भी भकूट दोष का प्रभाव कम हो जाता है। उदाहरण के लिए मंगल मेष और वृश्चिक राशि का भी स्वामी है। ऐसी स्थिति में भकूट दोष निष्प्रभावी होगा।